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लगाओ लगाम अपने धड़कते दिल पर

Sunny Rajan
Sunny Rajan
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मित्रों नमस्कार,

HandsPrayingNamaste“I am back” लेकिन इस बार किसी चैलेंज के साथ नहीं. बस सोच रहा था कुछ गंभीर विषय में लिखने को, किसी गंभीर मुद्दे को उठाने को परन्तु आपको पता है सोचने में मैं हमेशा से रसायन विज्ञान रहा हूं, जो अभी तक समझ नहीं आई. भले ही मैंने उसमें स्नातक की डिग्री हासिल की है, और आपको तो पता ही है आज कल डिग्री हासिल करना कितना आसान है पढ़ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती बस प्रवेश फार्म भरो और हो गए आप स्नातक. वैसे इस विषय में बहस करने से फ़ायदा नहीं.

जागरण जंक्शन मेरा प्रिय ब्लाग मंच है. भले ही मैं बहुत कम लिखता हूं परन्तु रोज़ाना ब्लाग ज़रूर पढ़ता हूं. आज सुबह जब मैं ऑनलाइन आया तो सबसे पहले मेरी नज़र सीमा जी की रचना पर पड़ी. सीमा जी धन्यवाद – मेरी समझ से इसे कहते हैं ब्लाग. मेरे द्वारा दिए गए टॉपिक पर सही मायनों में आपने एक न्यायसंगत लेख लिखा है. थोड़ी देर बाद जब मैंने एफ़5 (F5) यानी रिफ्रेश का बटन दबाया तो हैरान हो गया. ऐसा लगा जैसे गुलाबी मौसम के बीच होती रिमझिम बरसात में मनीष मल्होत्रा जी रोमांटिक हो गए हैं. अरे यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि उनका नया ब्लाग कह रहा है. ब्लाग का शीर्षक था “लड़की पटाने की टेक्निक”. क्यों मल्होत्रा जी क्या हो गया? अब तक गंभीर विषयों पर लिखने वाले व्यक्ति को क्या साँप सूँघ गया या फिर उनका दिल फिर से बच्चा हो गया? वैसे लिखा तो बहुत बढ़िया है 10-12 नहीं पटी तो मल्होत्रा जी का नाम बदल देना, अरे भाई मेरा नाम नहीं! लेकिन मल्होत्रा जी एक बात समझ में नहीं आई “होली तक क्यों रुकना जब दीपावली पहले आएगी”.

satishthokade_humtum01लेकिन मल्होत्रा जी और मेरे प्यारे दोस्तों लड़की क्यों पटाएं जब लड़की पटाने में आपको इतनी मेहनत करनी होती है. सबसे पहले आपको अपने अंदर सिंगिंग, डांसिंग, बॉडी बिल्डिंग, एक्टिंग जैसे क्वालिटी पैदा करनी होती है. पहले ज़रा मुझे यह बताएँ कि अगर यह सब क्वालिटी पैदा करनी ही है तो इंडियन आईडल और चक धूम-धूम में न जाएं वहाँ पैसा भी मिलेगा और शायद किसी हिंदी फिल्म में एकाध रोल भी मिल जाए फिर लड़कियाँ तो अपने आप पट जाएँगी. कांफिडेंस लाना ही है तो अपने जाब में कांफिडेंस न लाएं शायद सही पदोन्नति ही हो जाए.

अब बात करते हैं लड़कियों को मदद करने की. सभी पुरुष “आर आलवेज़ रेडी टू हेल्प देम” कभी कोई लड़की हम पुरुषों की भी मदद कर दे, हमारा भला तो कोई सोचता ही नहीं और अगर मदद करनी ही है तो गरीबों और उन लोगों की मदद न करें जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. कुछ दुआएं ही मिल जाएंगी.

beating_heartsक्यों पटाएं लड़कियाँ

एक सवाल मैं आप सबसे पूछना चाहता हूं “भले क्यों पटाएं लड़कियाँ” क्यों लगाए टेंशन अपने मत्थे. जी हाँ लड़कियाँ मतलब टेंशन. सबसे पहले मोबाइल के रिचार्च की टेंशन. अगर बैलेंस कम हुआ तो देर रात तक कैसे होगी बात और देर रात तक बात करने का मतलब अपनी नींद की खरी-खोटी कर सुबह देर से उठना और फिर आफ़िस या कालेज़ में देर से पहुंचना. आफ़िस और कालेज़ में भी चैन से न रहना. मैडम का हुक्म है अगर हर आधे घंटे में फोन नहीं किया तो………..

छुट्टी के दिन भी चैन से नहीं रहना मैडम को घुमाने ले जाना है शॉपिंग करानी है और फिर डिनर! वह भी बढियां से रेस्टोरेंट में. एक दिन में पूरी जेब खाली अब महीना कैसे चलेगा दूसरी छुट्टियां भी तो है उन छुट्टियों में भी मैडम को घुमाने ले जाना है नहीं तो मैडम नाराज़ हो जाएँगी.

0511-0802-1216-3635.jpgमैडम नाराज़ हो जाएगी तो एक और टेंशन. खाना पीना छूट जाता है नींद नहीं आती सब खराब लगने लगता है, किसी काम में मन नहीं लगता. टेंशन आप लें, नींद आप खोटी करें, खाना आप ना खाएं मैडम को कुछ फर्क नहीं पड़ता वह तो अपने में मस्त हैं खाती हैं घूमती हैं अपने दोस्तों से मिलती हैं और अगर आपने एक महंगा गिफ्ट दे दिया तो हो गई आपकी बल्ले-बल्ले. लेकिन कभी आप नाराज़ हों तो उन्होंने कोई गिफ्ट दिया है? सोचने में टाइम लग रहा है ना.

अगर आपके जीवन में कोई लड़की है तो सबसे ज़्यादा डर आपको उसे खोने का होता है और यह डर आपके कार्य में आपकी बातों में साफ़ झलकती है और कभी-कभी इस डर की वजह से आपके अपने दोस्तों से रिश्ते भी खराब होते हैं. और अगर खुदा न चाहे किसी कारणवश आप दोनों के रिश्तों में तकरार आता है तो फिर आप बन जाते हैं देवदास.

अब बात करते हैं उनकी जो कभी ईना, कभी मीना या कभी टीना के साथ दिखते हैं. वैसे उनको लड़की पटाने में अक्षय कुमार कहा जा सकता है जो शायद लड़कियों के मामलो में सब कुछ जानते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य “टाइम पास” का होता है. लेकिन एक साथ बहुत सारी भी सरदर्द बन सकती हैं. सभी के लिए टाइम निकलना बहुत मुश्किल होता है. पता नहीं यह सब इतना अच्छा टाइम मैनेजमेंट कहाँ से सीख लेते हैं.

boy_girl_symbolsइन सब बातो के बीच एक बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि हम लड़के लड़कियों को पटाने और घुमाने की वस्तु क्यों समझते हैं. क्यों हम लड़कियों को खिलौना समझते हैं. शायद यह हमारी मानसिकता के अंदर है. अगर हम इस मानसिकता को गंदे नाले में छोड़ आएं तो हम भी बेहतर समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ सभी को बराबर सम्मान मिले. और यह ज़रुरी नहीं कि एक लड़की हमेशा आपकी प्रेमिका बन कर रहे वह आपकी अच्छी दोस्त भी तो हो सकती है.

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